कालबेलिया नृत्य यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहर की सूची में में शामिल है जाने सम्पूर्ण जानकरी | Kalbelia dance is included in the list of UNESCO World Heritage Site.

कालबेलिया नृत्य यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहर की सूची में में शामिल है जाने सम्पूर्ण जानकरी | Kalbelia dance is included in the list of UNESCO World Heritage Site.

प्रिय पाठको आज हम जानेंगे की कालबेलिया नृत्य यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहर की सूची में में शामिल उसके बारे में की यह नृत्य विश्व प्रसिद्ध क्यों है | एवं उसके पीछे क्या रहस्य है | कालबेलिया नृत्य यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहर की सूची में में शामिल  के बारे में आज हम विस्तार से अध्ययन करेंगे |ये भी पढ़े :- Rivers Of Rajasthan In Hindi 

कालबेलिया नृत्य का परिचय | Introduction to Kalbelia Dance in Hindi 

कालबेलिया नृत्य कालबेलिया जाती के द्वारा किया जाता है | जो की सपेरा जाती एवं नर्तक जाती और राजस्थान का कालबेलिया नृत्य आदि प्रमुख है | जो यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहर की सूची में कालबेलिया नृत्य शामिल है|  

कालबेलिया जनजाति के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य | Important facts about Kalbelia Tribe

  • भारत के राजस्थान राज्य के कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को ने अपनी सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि की सूची में शामिल किया गया है | 
  • कालबेलिया नृत्य राजस्थान राज्य का प्रसिद्ध नृत्य शैली है | जो राजस्थान के रहने वाली सपेरा जाती ( सपेरा को पकड़ने वाली जाती ) के द्वारा किया जाता है | इस जाती के नाम के आधार पर नृत्य को कालबेलिया नृत्य कहा जाता है | 
  • कालबेलिया नृत्य करने वाली महिलाए ( नृत्यांगना ) घेरदार काले घागरे में गोल-गोल घुमते हुए सर्प की नकल के आधार पर नृत्य करती है | परन्तु कालबेलिया जाती के पुरुष खंजरी एवं पुंगी वाद्य बजाते है | जो पारंपरिक रूप से सांपो को पकडने के लिए बजाया जाता है | 
  • राजस्थान प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्य लोक नृत्य है | जो की सपेरा जाती के द्वारा किया जाता है | इस नृत्य ने राजस्थान को विश्व पर पहचान दिलाई गई है | 

राजस्थान की नृत्य करने वाली ( नृत्यांगना ) गुलाबो ने कालबेलिया नृत्य की कला को विदेशो में प्रसिद्ध किया गया |

राजस्थान की कालबेलिया जाती |Kalbeliya caste of Rajasthan

कालबेलिया जाती राजस्थान की घुमंतू जातियों में से एक जाती है | एवं उसके रीती-रिवाज और आचार-विचार में भिन्नता होने के बाजजूद भी व्यवहारिक पौर पर यह जाती सम्पूर्ण भारत में फैली हुई है | सांप का नाम सुनते ही आम जनता भयभीत हो जाती है | 

परन्तु सांप को पकडने वाले ( सपेरे ) के लिए सांप उसकी रोजी-रोटी का सहारा है | इस जातियों के लिए सांप को पकडना एवं पुंगी या बीन को बजाकर सांप का प्रदर्शन करना एवं नाचना और गाना तथा विभिन्न प्रकार की जडी-बूटिया बेचना उसकी दिनचर्या का मुख्य अंग है | 

कालबेलिया जाती की वेशभूषा | Kalabeliya Jati Ki Veshbhusha Rajasthan

राजस्थान के कालबेलिया जाती की की वेशभूषा भगवा वस्त्र, कानो में पहने हुए कुंडल,बढ़ी हुई दाढ़ी-मूंछ,सर पर पहना हुआ भगवा एवं अन्य प्रकार का साफा ( पगड़ी ),गले में पहनी हुई साधुओ जैसी माला, कंधे पर कावदनुमा झोली संभाले कालबेलिया जाती के लोग दिन भर अपने जीवन यापन के लिए धूमते फिरते है | 

सपेरे नाथ लोगो के गुरु कणीपाव कनीपाक ( कृष्णपाद ) थे | गुरु योगी कणीपाव गोरखनाथ ( गोरक्षनाथ ),मछंदरनाथ ( मत्स्येन्द्र नाथ ) के समकालीन थे | इस जाती के लोग योगी जाती के कहलाते है | एवं सिद्ध परंपरा के अनुयायी है |  योगी जाती का अपभ्रंश जोगी बना इसलिए उसे सपेरा जाती के जोगी जाती के लोग भी कहा जाता है | 

कणीपाव के गुरु जालंधर नाथ थे | जो एक पौराणिक कथा के आधार पर शिव-पार्वती के किसी गूढ़ वार्तालाप को समुंद्र के जल में छुपकर सुनने में कामयाब हुए थे | इसलिए पारंपरिक तौर पर शिव को यह आदि गुरु मानते है | नाथो की सिद्ध परंपरा का ये श्रद्धा पूर्वक अनुसरण करते है | सपेरो के कानो में कुंडल एवं हाथ में कमंडल एक तरफ इसी परंपरा का परिचय है |

और दूसरी तरफ समाज में इस जाती के व्यवसाय का प्रतिक है | गोगामेडी का गोरक्ष टीला एवं ददरेवा का स्थान इस जाती का तीर्थ स्थल है | इसके गुरु कणीपाव ने किन परिस्थितियों में और किन कारणों से सांप जैसे जहरीले जानवर को अपनाया यह एक अलग प्रसंग है | यह इस तरह प्रतिक है की बीन एवं सर्प इसके गुरु द्वारा इन्हे रोजी-रोटी के साधन स्वरूप प्रदान किये हुए है | 

कालबेलिया जाती कलबली का अपभ्रंश अंग है जिसका अर्थ है काल का मित्र या काल को अपने वश में करने वाले | सांप को काल के अलावा शक्ति एवं गति के प्रतिक को माना गया है | भारत देश में ही नहीं एवं विभिन्न देशो की पौराणिक कथाओ में भी सांप के उदहारण देखने को मिलते है | भारत देश में नाग पंचमी के दिन नागो का त्यौहार नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है | 

उस दिन नागो की पूजा की जाती है | एवं यह उत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है | इस दिन नाथो ( सपेरा जाती के लोगो को ) दान-दक्षिणा भी दी जाती है | कालबेलिया जाती के द्वारा सांप को को वश में करना विकास एवं विनाश दोनों को दर्शाया जाता है | उसके आगे दोनों रास्ते खुले रहते है | कहा जाता है की बीन की धुन से सर्वप्रथम सर्प को आमंत्रित ( बुलाया ) जाता है | 

बीन की धुन से अलग-अलग सांपो के नाम लेकर सर्पो को न काटने की कसम दी जाती है ताकि सर्प काटे नहीं धन्वंतरी वैद्य मंत्र सुनाया जाता है | जब सांप पास में आ जाता है तो लहरा सुनाकर सबको मस्त किया जाता है | सांप को टोकरी में डालकर घर पर लाया जाता है | सांप के मुंह से जहर की थैली को निकला जाता है | उसे जहर (विष ) हीन किया जाता है | 

उसी सर्प को सपेरो के द्वारा लोगो को दिखाकर लोगो का मनोरंजन किया जाता है | सपेरे जाती के लोग विभिन्न प्रकार की ओषधि जडी बूटिया बेचने का कार्य भी करते है | कालबेलिया जाती के लोग जडी बूटियों को पहाड़ो एवं पहाडियों से ढूंढ कर लेट है | जैसे मौरा,सियाल-सिंगी.जहर.नरमादा कंजा,मोहिन,रुद्राक्ष,सर्पमणि अन्य प्रकार की जडी-बूटिया पहाड़ो एवं पहाडियों से ढूंढ कर लाते है |

 सपेरो का कहना है की ग्रामीण ईलाको में कुछ सपेरो के द्वारा अंधविश्वासी ग्रामीणों को ताबीज एवं नगीनों के रूप में पत्थर भी बेचे जाते है | परन्तु सपेरो का कहना है की  खास वस्तु ( चीज ) जो होती है वह सर्प-मणि होती है | यह मणि सर्प के जहर को सोख लेती है | एवं सर्प का दसा ( काटा ) हुआ व्यक्ति पुनः स्वस्थ ( ठीक ) हो जाता है | असली सर्प-मणि एक दुर्लभ वस्तु है | जिसे सपेरे स्वीकार लेते है | 

देखा जा रहा है की पिछले दशक में कुछ कालबेलिया जाती की योवातियो ने भी नृत्य ( नाचना ) शुरू किया गया है | कालापारखीयो की नजर ने सहारा दिया की आज इस युवतियों का नृत्य कालबेलिया या सपेरा के नाम से विश्व स्थर ( अंतरराष्ट्रीय ) ख्याति प्राप्त किया गया है |  

कालबेलिया जाती के प्रमुख नृत्य | Kalbeliya Jati Ke Pramukh Nrity

कालबेलिया जाती के प्रमुख नृत्य निन्म प्रकार के है :- 

  • पणिहारी 
  • इंदोनी 
  • शंकरिया 
  • बागडिया 
  • धूमर 

कालबेलिया जाती के प्रमुख नृत्य | Kalbeliya Jati Ke Pramukh Nrity, kalbelia dance

कालबेलिया जाती महिला नृत्यांगना ( महिला नृत्य करने वाली ) गीत गाती हुई नृत्य करती है | नृत्य करने से पहले नृत्य करने वालो का शरीर की लोच प्रदर्शन दक्षता पूर्ण होता है | जिसमे पुरुष बीन,डफ और मंजीरा वाद्य यंत्र करते हुए गायन में साथ देते है |

कालबेलिया जाती के प्रमुख कलाकार | Kalabeliya Jati Ke Pramukh Kalakar

कालबेलिया जाती के प्रमुख कलाकार रुमलानाथ -गुलाबो एवं अन्य है जिन्होंने कालबेलिया नृत्य को विश्व स्तरीय पहचान दिलाई है |  

निषकर्ष :- 

कालबेलिया जाती के कालबेलिया नृत्य यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहर की सूची में में शामिल है | इस लेख के माध्यम से इस लेख में कालबेलिया जाती के बारे में एवं कालबेलिया जाती के नृत्य के बारे में सम्पूर्ण जानकारी इस लेख के माध्यम से दी गई है | की गुलाबो ने किस तरह कालबेलिया नृत्य यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहर की सूची में में शामिल किया गया है | यह सम्पूर्ण जानकारी इस लेख के माध्यम से दी गई है |  

FAQ:-


कालबेलिया नृत्य कहाँ का प्रसिद्ध है?

कालबेलिया नृत्य राजस्थान का प्रसिद्ध नृत्य है |


कालबेलिया जनजाति के नृत्य कौन कौन से हैं?

कालबेलिया जाती के प्रमुख नृत्य निन्म प्रकार के है :- 
पणिहारी 
इंदोनी 
शंकरिया 
बागडिया 
धूमर 


कालबेलिया नृत्य को विश्व धरोहर सूची में कब शामिल किया गया?

कालबेलिया नृत्य को विश्व धरोहर सूची में 2010 शामिल किया गया है |


कालबेलिया नृत्य का दूसरा नाम क्या है?

कालबेलिया नृत्य का दूसरा नाम सपेरा नृत्य है |

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