प्रिय पाठको आज हम द्वारका नगरी का इतिहास के बारे में इस लेख के माध्यम से विस्तृत जानकारी के बारे मे जानेंगे की द्वारका नगरी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है | संसार को गीता का ज्ञान देने वाले भगवान श्री कृष्ण का साम्राज्य वर्त्तमान में गुजरात राज्य के द्वारका नगर में स्थित है | ये भी पढ़े :- सीताबाड़ी का मेला राजस्थान

द्वारका नगरी का इतिहास | Dwarka Nagari history
द्वारका नगरी का इतिहास के इस लेख में मोक्ष तक पहुँचाने का मार्ग है | द्वारिका शब्द में द्वार एवं का अक्षर का समन्वय रूप होकर द्वारिका शब्द बना है | जिसका अर्थ द्वार यानि दरवाजा एवं का यानि गुदार्थ में ब्रह्म होता है | इसका मतलब यह है की जो मोक्ष तक पहुँचाने का दरवाजा है वह है द्वारिका | अर्थात कर्म के बंधन से मुक्त होने का दरवाजा द्वारिका है | या यह कहा जाये की द्वारिका को मुक्तिधाम या मोक्षपुरी का कहा जा सकता है | पौराणिक श्लोको में कहा गया है की मुक्ति पाने का धाम द्वारिका है | जैसे :-
“ अयोध्या मथुरा माया,काशी कांची अवंतिका ,पूरी द्वारवती चैव सप्तधा मोक्षदायिका: || ”
इसका अर्थ यह है की अयोध्या,मथुरा,कशी,कांचीपुरम,अवंतिका(उज्जैन),पूरी(जगन्नाथपुरी) एवं द्वारवारी(द्वारिका)यह मोक्ष देने वाले नगर या नगरी है |
द्वारका नगरी कहां है | dwarka nagri kaha hai
द्वारका नगरी का इतिहास में द्वारिका भारत देश के गुजरात राज्य के सौराष्ट्र प्रदेश के जामनगर जिले में द्वारिका है यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण का भव्य मंदिर है | पुरातत्व के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के इस भव्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी में हुआ था | मंदिर के मुख्य मंडप को लाडवा मंडप कहा जाता है | जो की यह मंडप 15 वीं शताब्दी से 16 वीं शताब्दी में बना हुआ है |
भगवान श्री कृष्ण के इस मंदिर का शिल्प मौर्यकालीन गुप्तकालीन चावड़ा एवं चालुक्य राजवंश के समकालीन में इस मंदिर का निर्माण हुआ था | वर्षो पूर्व भारत देश के विदेशी व्यापार द्वारिका बंदरगाह से ही होता था | इसलिए प्राचीन कल से ही द्वारिका को भारत देश का विदेशी प्रवेश द्वार भी कहा जाता है |
द्वारका नगरी का इतिहास द्वारिका के समुंद्र मार्ग से इजिप्ट, अरेबिया,मेसेपोटामिया एवं अन्य देशो का व्यापार एवं आवागमन द्वारिका समुंद्र मार्ग से ही होता था | एवं यह कहा जा सकता है | की द्वारिका में देशी एवं विदेशी संस्कृति का आदान-प्रदान होता था | प्राचीन काल समय में द्वारिका को द्वारावती के नाम से जाना जाता था |
द्वारका नगरी का इतिहास में भारत देश के गुजरात राज्य में द्वारका शहर का एक प्राचीन इतिहास है जो की सदियों वर्षो पुराना है | द्वारका शहर के इतिहास का उल्लेख महाभारत एवं महाकाव्य में द्वारका साम्राज्य के रूप में मिलता है | द्वारका शहर गोमती नदी के तट ( किनारे ) पर स्थित है | द्वारका शहर को भगवान श्री कृष्ण की राजधानी के रूप में महाभारत एवं महाकाव्य में वर्णित किया गया है |
हिन्दुओ का यह मानना है की भगवान श्री कृष्ण का मंदिर भगवान श्री कृष्ण के आवासीय महल के ऊपर बनाया गया है | कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण उसके पुत्र श्री व्रजनाभ के द्वारा करवाया गया था | इस मंदिर का निर्माण 15-16 वीं शताब्दी में किया गया था | इस मंदिर क्षेत्रफल 21 मीटर है जो की पूर्व से पच्चिम 21 मीटर एवं उत्तर से दक्षिण 23 मीटर है | और इस मंदिर की सबसे ऊँची छोटी 51.8 मीटर ऊँची है |
द्वारका नगरी का इतिहास हिन्दू धर्म के अनुसार सबसे बड़े महत्वपूर्ण चार धाम बताये गए है | इस चारो धामों बहुत बड़ी विशेषताए है | की ये चारो धाम भारत के चारो दिशाओ में फैले हुए है | जिसमे से उत्तर दिशा में बद्रीनाथ धाम एवं दक्षिण दिशा में रामेश्वरम धाम और पूर्व दिशा में जगन्नाथ धाम तथा पच्चिम दिशा में द्वारिका धाम ये चारो प्रसिद्ध धाम है |
द्वारका नगरी का इतिहास हिन्दू धर्म की मान्यताओ के अनुसार इस चारो धामों यात्रा करने पर मनुष्य का जीवन उद्वार हो जाता है |इसी कारण द्वारिका को हिन्दु धर्म भगवान कृष्ण के प्रति आस्था का प्रतिक है | एवं हिन्दुओ का विशेष महत्त्व है |
द्वारका मंदिर का रहस्य | dwarka mandir ka rahasya
द्वारका नगरी का इतिहास के अनुसार पुराणों के एक कथा के अनुसार द्वारिका को मुक्तिधाम मनाकर कई हजारो वर्षो पहले ब्रह्मा जी पुत्र सनकादिक एवं ऋषियों ने मोक्ष की प्राप्ति के लिए द्वारिका में भगवान विष्णु की आराधना की गयी थी | कठिन तपस्या करने के बाद जब ऋषियों को भगवान विष्णु के दर्शन होने वाले थे | उससे पहले सुदर्शन चक्र ऋषियों के सामने आकर प्रकट हुआ था |
तब भगवान विष्णु का पूजन करने के लिए ऋषि मुनियों माँ गंगा का आह्वान करने के बाद उसे स्वर्ग में बदला गया था | एवं महर्षि वशिष्ठ मुनि के साथ में स्वर्ग में माँ गंगा का “ गो ” अर्थात “ पृथ्वी ” में बदलाव हुआ था | और द्वारिका से बहती हुई गंगा गोमती नदी के रूप में प्रसिद्ध ही गई थी | एवं भगवान श्री विष्णु सुदर्शन चक्र के प्रकट हुए थे | इसी कारण से भगवान श्री विष्णु को चक्रनारायण भी कहलाये थे |
द्वारका नगरी का इतिहास भगवान श्री विष्णु चक्रनारायण के रूप में द्वारिका नगर में में प्रकट हुए थे | जिससे द्वारिका के चक्रतीर्थ के नाम से भी जाना जाता है | द्वारिका को रत्नाकर या समुन्द्र के साथ गोमती नदी का संगम होने के कारण से इस स्थान को संगम नारायण भी कहा जाता है | यहाँ पर पवित्र संगम गोमती घाट मनुष्य के कई पापो से मुक्ति प्रदान करता है |
जब भगवान श्री विष्णु ने त्रेता युग में वामन अवतार लिया था उस समय में राजबली से तीन कदम भूमि मांगने पर राजबली ने अपना शीश दिया तब भगवान श्री विष्णु के त्रिविक्रम अवतार में राजबली को द्वारिका की भूमि पाताल में स्थापित किया गया था | द्वारका नगरी का इतिहास एवं भगवान स्वयं राजबली के राज्य द्वारिका में द्वारपाल बने थे | उसके बाद द्वापर युग के अंतिम समय में भगवान श्री कृष्ण का द्वारिका में आगमन हुआ तब भगवान के दर्शन करने के लिए गोमती नदी में स्न्नान के महत्त्व के लिए दुर्वासा ऋषि द्वारिका में आए थे |
द्वारका नगरी का इतिहास उस समय द्वारिका में कुशादी दैत्यों ने ऋषि को भगवान के दर्शन करने एवं पवित्र नदी में स्न्नान करने पर कई परेशानिया उत्पन्न की गयी थी | इसी कारण से ऋषि दुर्वासा मुनि पाताल लोक में पहुंचे वहां पर भगवान श्री विष्णु को इस कठिनाई के बारे में अवगत करवाया गया |
उसके बाद भगवान श्री विष्णु के बलिराजा से सहमति लेकर द्वारिका में आए और वहां के देत्यो का विनाश किया एवं दुर्वासा मुनि को वहां की पवित्र नदी में स्न्नान करवाया गया | एवं भगवान के रूप में पाताल से त्रिविक्रम का द्वारिका में आगमन हुआ इसी कारण से द्वारिका का एक नाम त्रिविक्रम भी है |
द्वारका मंदिर | dwarka mandir
द्वारका नगरी का इतिहास में द्वारका मंदिर एवं घाट और कुंड, तालाब तथा ब्रिज बने हुए है जो निम्न प्रकार से है जैसे :-
- भगवान श्री द्वारिकाधीश का मंदिर
- माता श्री रुकमणी जी का मंदिर
- गोमती घाट
- छप्पन सीढ़ी का मंदिर
- पंचतीर्थ मंदिर
- श्री कुशेश्वर महादेव जी का मंदिर
- हरी कुंड
- गोपाल घाट
- श्री माँ गीता माता का मंदिर
- माता श्री भद्रकाली माँ ( काली माता ) का मंदिर
- माता श्री शारदा माँ पीठ का मंदिर
- माता श्री सरस्वती माँ का मंदिर
- माता श्री गायत्री माँ का मंदिर
- श्री जलाराम बाबा का मंदिर
- 12 ज्योतिलिंग श्री नागेश्वर महादेव जी का मंदिर
- श्री सुदामा ब्रिज
- समुन्द्र के अन्दर भगवान श्री कृष्ण का बेट द्वारिका मंदिर
निष्कर्ष :-
द्वारका नगरी का इतिहास में हमारी टीम द्वारिका मंदिर से जुडी सम्पूर्ण जानकारी इस लेख के माध्यम से दी गई | जो की इस द्वारिका मंदिर के बारे में एवं द्वारिका नगरी का रहस्य और द्वारिका नगरी कहां है,द्वारका मंदिर का रहस्य तथा द्वारका मंदिर के बारे में हमारी टीम ने सम्पूर्ण जानकरी इस लेख के माध्यम से दी गई है | हमें आशा है की यह लेख आपको बहुत प्रसन्न आएगा |
FAQ :-
द्वारकाधीश मंदिर में कितनी सीढ़ियां हैं?
द्वारकाधीश मंदिर में 56 सीढ़ियां हैं |
क्या द्वारका अभी भी पानी के नीचे है?
कहां जाता है की द्वारका पानी के निचे डूबा हुआ है | जब भगवान कृष्ण की विदाई होने द्वारिका पानी में डूब गया था |
द्वारिका में कौन सा समुद्र है?
द्वारिका में अरब सागर समुद्र है |
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