महाराणा प्रताप का इतिहास | History of Maharana Pratap in Hindi

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महाराणा प्रताप का इतिहास | History of Maharana Pratap in Hindi

प्रिय पाठको आज हम जानेंगे महाराणा प्रताप का इतिहास के बारे में की महाराणा प्रताप का जन्म कब एवं कहा हुआ था | और उसके परिवार के बारे में एवं प्रताप के घोड़े के बारे में और उसके जीवनी के बारे महाराणा प्रताप का इतिहास के आज हम अध्धयन करेंगे | ये भी पढ़े : – पटवो की हवेली

महाराणा प्रताप का इतिहास
महाराणा प्रताप का इतिहास

महाराणा प्रताप का इतिहास | History of Maharana Pratap

महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई 1540 ईस्वी में हुआ था | उसके बचपन का नाम किका था | प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह था एवं माता का नाम जयंता बाई था | प्रताप राणा सांगा के पौत्र थे | राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले में मेवाड़ में राजपूतो का महत्वपूर्ण स्थान है | इस वीर भूमि पर महाराणा प्रताप जैसे वीर योध्धा का जन्म हुआ था |

महाराणा प्रताप उदयपुर के मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के राजा थे | उसके कुल देवता एकलिंग महादेव थे | मेवाड़ के संस्थापक गौरव बाप्पा रावल ने इस मंदिर का निर्माण 8 वी शताब्दी में करवाया था | एकलिंग महादेव का मंदिर राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले में स्थित है |

महाराणा प्रताप का राज्य अभिषेक ( महाराणा प्रताप का इतिहास )

महाराणा प्रताप का राज्य अभिषेक गोगुन्दा में हुआ था | युद्ध की विभीषिका के बिच राणा उदयपुर ने चित्तोड़ छोड़कर अरावली पर्वत पर शहर बचाया | उसका नाम उदयपुर रखा गया | जो मेवाड़ की राजधानी बनी | राणा उदय सिंह ने अपनी मृत्यु के समय भटियानी रानी के छोटे पुत्र जगमाल के राजा बनाया था |

महाराणा प्रताप का इतिहास
महाराणा प्रताप का इतिहास

महाराणा प्रताप बड़े पुत्र थे | और वे स्वाभाविक उत्तराधिकारी थे | राणा उदय सिंह के जगमाल को राजा बनाने पट सरदारों एवं जगीदारो ने विरोध किया था | मेवाड़ की प्रजा को महाराणा प्रताप से लगाव था | महाराणा प्रताप को मेवाड़ की प्रजा ने 01 मार्च 1576 ईस्वी को मेवाड़ का राजा बनाया था |

मेवाड़ की राजधानी उदयपुर थी | महाराणा प्रताप ने सन 1568 से 1597 ईस्वी तक उदयपुर पर शासन किया था | महाराणा प्रताप को लगा की यवन , तुर्क आसानी से आक्रमण कर सकते है तो प्रताप ने सामंतो की सलाह से उदयपुर छोड़कर कुम्भलगढ़ एवं गोगुन्दा की पहाड़ी इलाकों में रहने लगे |

महाराणा प्रताप की प्रितिज्ञा ( महाराणा प्रताप का इतिहास )

महाराणा प्रताप के शासन कल के समय दिल्ली में मुग़ल सम्राट अकबर का शासन था | मुग़ल सम्राट अकबर भारत के सभी राजा महाराजाओ को अपने अधिन करना चाहता था एवं भारत पर मुगलों का अधिकार जमाना चाहता था | महाराणा प्रताप के कुल एकलिंग महादेव की कसम खाकर प्रतिज्ञा ली की मुग़ल सम्राट अकबर के लिए कभी अपनी अधीनता स्वीकार नहीं करेगा |

30 वर्षो के लगातार कोशिश करने के बाद भी प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी | अकबर ने प्रताप के समझाने के लिए चार बार शांति दूतो को भेजा था | महाराणा प्रताप ने अकबर के इस प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया |

महाराणा प्रताप का चेतक घोडा एवं बल

महाराणा प्रताप के पास प्राणों से प्यारा घोडा था | उसका नाम चेतक था | यह घोडा विश्व का सर्वश्रेठ घोडा था | कहा जाता है की महाराणा प्रताप लगभग 72 किलो का कवच पहनते थे | और लगभग 81 किलो का हाथ में भला रखते थे | महाराणा प्रताप 208 कोलो वजन के साथ युद्ध में उतरते थे |

अकबर और जगमाल की मुलाकात ( महाराणा प्रताप का इतिहास चित्तौड़गढ़)

महाराणा प्रताप को मेवाड़ की प्रजा के द्वारा मेवाड़ का राजा बनने पर जगमाल महाराणा प्रताप से नाराज होकर अकबर से मिलने के लिए चला गया | अकबर ने जगमाल को जहाजपुर का इलाका देकर अपने साथ मिला लिया | उसके बाद अकबर के जगमाल को सिरोही का आधा राज्य दिया जिससे सिरोही के राजा सुरतान देवड़ा से दुश्मनी हो गई थी | जगमाल सन 1583 ईस्वी में युद्ध में मारा गया था |

अकबर ने किया मेवाड़ पर आक्रमण

मेवाड़ पर अपना अधिपत्य ज़माने के लिए अकबर ने कई बार कोशिश की परन्तु असफल रहा | अकबर ने अजमेर के केंद्र बनाकर महाराणा प्रताप के विरुद्ध कई प्रकार के आक्रमण किये | कई वर्षो तक महाराणा प्रताप ने मुगलों के साथ संघर्ष किया था | महाराणा प्रताप ने पकड़ी गई मुगलों की बेगमो को सम्मानपूर्वक मुगलों के पास भेजा था |

अकबर की विशाल सेना एवं विशाल हथियारों के होने के बावजूद भी महाराणा प्रताप को झुकाने में असफल हो गया | आमेर के राजा भगवानदास के भतीजे मानसिंह ( भुआ जोधा बाई का विवाह अकबर के साथ हुआ था ) की विशाल सेना के साथ डूंगरपुर एवं उदयपुर पर अधीनता स्वीकार करने हेतु विवश करने के उधेश्य से भेजा था | मानसिंह की सेना के साथ डूंगरपुर की सेना ज्यादा प्रतिरोध नहीं कर सकी थी |

भगवानदास के भतीजे मानसिंह महाराणा प्रताप को समझाने के लिए उदयपुर चले गए की अकबर की अकबर की अधीनता स्वीकार कर लो | महाराणा प्रताप ने मानसिंह को अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए माना कर दिया और युद्ध में सामना करने की घोषणा की | मानसिंह को खाली हाथ अकबर के पास जाना पड़ा जिससे अकबर विशाल मुग़ल सेना के साथ मानसिंह एवं आफस खां के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण किया |

जिससे 30 मई 1576 ईस्वी में हल्दी घाटी के मैदान में युद्ध शुरू हो गया | अकबर के साहसी सेनापति महावत खां एवं आफस खां और मानसिंह के साथ शहजादा सलीम एवं अकबर की विशाल सेना जिसमे मुग़ल एवं राजपूत और पठान योधा थे | जिसकी संख्या लगभग 1 लाख के आसपास बताई जाती है |

महाराणा प्रताप के अतभुत वीरता एवं साहस को देखकर मुगलों के होस उड़ गए एवं महाराणा प्रताप से सैकड़ो सेनिको को इस युद्ध में मार डाला था | विकत परिस्थिति को देखकर झाला सरदार मानसिंह से प्रताप का मुकुट एवं छत्र धारण किया तब अकबर प्रताप समझ कर उसके पीछे चले गए तब महाराणा प्रताप को वहा से निकालने का अवसर मिला |

संवत 1633 में अकबर सीकर के बहाने अपने मुग़ल सेनिको के साथ प्रताप के इलाके में चले गए | और महाराणा प्रताप पर अचानक धावा बोल दिया | महाराणा प्रताप ने उस समय की परिस्थिति को देखते हुए खुद को पहाड़ो में रहने लगे | अकबर ने वहा की स्थिति को समझ कर वहा से चले जाने में समझदारी की थी |

शाही सेनापति मिर्जा खां की सेना ने समर्पण किया तब सेना में शाही महिलाए भी थी | महाराणा प्रताप ने सभी के सम्मान को सुरक्षित रकहते हुए आदर से मिर्जा खां के पास भेजा |

महाराणा प्रताप का मुग़ल अकबर के पुत्र सलीम (जहांगीर ) से युद्ध

महाराणा प्रताप ने हल्दी घाटी क्र युद्ध में 20 हजार राजपूतो के साथ 80 हजार मुग़ल सरदार राजा मानसिंह की सेना के साथ युद्ध किया तब अकबर का पुत्र जहांगीर भी इस युद्ध में शामिल था | महाराणा प्रताप ने जहांगीर के साथ ऐसा युद्ध किया की जहांगीर को युद्ध का मैदान छोड़कर भागना पड़ा | उसके बाद जहांगीर ने सेना एक साथ कर महाराणा प्रताप पर आक्रमण किया यह युद्ध बहुत भयंकर था |

इस युद्ध में महाराणा प्रताप का घोडा चेतक घायल हो गया था | महाराणा प्रताप एवं उसके साथियों ने बहादुरी के साथ मुगलों का सामना किया था | परन्तु मुगलों के पास तोपों एवं बन्दूको का जाप्ता अधिक था | युद्ध भूमि में 22 हजार राजपूत सैनिको मेसे 8 हजार सैनिक जीवित रहे | किसी तरह बच कर निकले और महाराणा प्रताप को जंगलो में रहना पड़ा |

महाराणा प्रताप को रहना पड़ा जंगलो में ( महाराणा प्रताप का इतिहास )

महाराणा प्रताप हल्दी घाटी युद्ध के बाद में अपना समय पहाड़ो एवं जंगलो में बिताना पड़ा | अपनी नीतियों से अकबर को कई बार हार का मुह देखना पड़ा | महारानी एवं कुवर और राजकुमारी तथा घास की रोटियों और जांगल के पोखरों के जल पर किसी प्रकार अपना जीवन बताने को मजबूर हुए | अरावली की गुफा ही महाराणा प्रताप एवं उसके परिवार का घर था और शिला ही उसकी शैया थी | महाराणा प्रताप को अपने परिवार एवं छोटे बच्चो की चिंता सताने लगी थी |

मुग़ल चाहते थे की महाराणा प्रताप किसी तरह अकबर की अधीनता स्वीकार कर ले | अकबर ने महाराणा प्रताप को कई प्रकार की लोभ के सन्देश भी भेजे | बल्कि प्रताप हिदुत्व का गौरव एवं त्याग और ताप पर अड़े रहे उन्होंने सरे संदेशो को अस्वीकार किया |

कई बार छोटे राजाओ ने महाराणा प्रताप को अपने राज्य में रहने की गुजारिश की परन्तु प्रताप ने मना किया की मेवाड़ को मुग़ल अधिपत्य से बचने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा ली थी जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा तब तक महलों को छोड़कर जंगलो ने रहेंगे | कंद-मूल एवं फलो से पेट भरेंगे | बल्कि मुगलों का अधिपत्य स्वीकार नहीं करेंगे | जंगलो में रहकर महाराणा प्रताप ने भीलो के साथ मिलकर कई बार मुगलों को कठिनाईयों में डाला |

महाराणा प्रताप की मदद की भामाशाह ने

महाराणा प्रताप का इतिहास
महाराणा प्रताप का इतिहास

मेवाड़ के भामाशाह के महाराणा प्रताप की मदद की थी | भामाशाह के अपनी सारी संपत्ति महाराणा के चरणों में रख दी थी | जिसमे 20 लाख अशर्फिया एवं 25 लाख रुपये महाराणा प्रताप को भेट के रूप में दिए थे | महाराणा प्रताप इस संपत्ति से पुनः सैन्य बल का पुनर्गठन किया था | महाराणा प्रताप के पुनः कुम्भलगढ़ पर अपना कब्ज़ा स्थापित किया | मुगलों द्वारा स्थापित थानों एवं ठिकानो पर आक्रमण किया |

अकबर की सेना के द्वारा की गई लूटपाट

मुग़ल बादशाह अकबर सन 1635 ईस्वी में शाहबाज खां के नेतृत्व में विशाल सेना मेवाड़ भेज दी थी | इस सेना ने स्थानीय मदद के आधार पर कुम्भलगढ़ एवं केलवाडा पर कब्ज़ा किया और गोगुन्दा एवं उदयपुर में लुट-प[पट की थी | महाराणा प्रताप विशाल सेना से युद्ध जारी रखा एवं पहाड़ो में रहकर सुरक्षित रहे | रो चावंड पर पुनः कब्ज़ा किया | शाहबाज खां को खाली हाथ अकबर के पास जाना पड़ा |

महाराणा प्रताप का पुनः राज स्थापित ( महाराणा प्रताप का इतिहास )

चित्तोड़ छोड़ने के बाद महाराणा प्रताप ने अपने सभी दुर्गो को शत्रुओ से पुनः अधिकार में लिया | और उदयपुर को राजधानी बनाया गया | प्रताप ने अपनी आत्मशक्ति के आधार पर चित्तोड़ एवं मांडलगढ़ एवं अन्य सम्पूर्ण मेवाड़ पर शासन पुनः स्थापित किया गया | अकबर ने कई बार महाराणा प्रताप को अपने अधिन करने के इए चुनौती दी परन्तु अकबर को खाली हाथ रहना पड़ा |

महाराणा प्रताप ने लगभग 30 तक मुगलों से युद्ध एवं संघर्ष परन्तु मुग़ल महाराणा प्रताप को नहीं झुका सके | युद्ध के दौरान लगी चोट के कारण से महाराणा प्रताप की सन 1597 ईस्वी में मृत्यु चावंड हो गई थी |

निष्कर्ष:-

महाराणा प्रताप का इतिहास के बारे में हमारी टीम ने सम्पूर्ण जानकारी लेने के बाद इस लेख सम्पूर्ण जानकारी बताई गई है जो की विद्यार्थियों को महाराणा प्रताप का इतिहास परीक्षा एवं अध्धयन के काफी सफलता मिलेगी |

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महाराणा प्रताप का इतिहास FAQ


महाराणा प्रताप का असली नाम क्या है ?

महाराणा प्रताप का असली नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोधिया


महाराणा प्रताप का बचपन नाम क्या है

महाराणा प्रताप का बचपन का नाम किका था |


हल्दीघाटी के युद्ध में किसकी जीत हुई थी?

महाराणा प्रताप की


चेतक किसका घोड़ा था?

चेतक महाराणा प्रताप का घोडा था और यह घोडा मारवाड़ी घोडा था |


सबसे भारी तलवार किसकी थी?

सबसे भरी तलवार महाराणा प्रताप की थी |


अकबर की सबसे प्रिय रानी कौन थी?

जोधा बाई जो की वह एक राजकुमारी थी |


महाराणा प्रताप की समाधि कौन सी जगह पर है?

बन्डोली , चावंड में महाराणा प्रताप की समाधी है |


हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था?

हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में |

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