कोणार्क का सूर्य मंदिर सम्पूर्ण जानकारी । Konark Sun Temple

कोर्णाक का सूर्य मंदिर का इतिहास हिंदी | Konark Ka Sury Mandir In Hindi

प्रिय पाठकों आज हम जानेंगे इतिहास प्रसिद्ध कोर्णाक का सूर्य मंदिर| के बारे में की इस मंदिर को किसने एवं कब और कितने साल पहले बनाया था |   यह भी पढे- भूगोल के प्रश्न

Konark Sun Temple
कोणार्क का सूर्य मंदिर

कोर्णाक के सूर्य मंदिर | Konark Sun Temple

सूर्य भगवान का यह मंदिर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में बना हुआ है उसे को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है 

उस सूर्य मंदिर को देखने के लिए देश एवं विदेश से पर्यटक हजारों की संख्या में हर रोज पहुंचते है | एवं भुवनेश्वर से 65 किलोमीटर की दूरी पर कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है | सूर्य देवता का यह एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है |

कोणार्क का सूर्य मंदिर बनाने का इतिहास | History Of Making Sun Temple

प्रचलित कथा के अनुसार कोणार्क का सूर्य मंदिर | Konark Sun Temple श्री कृष्ण के पुत्र श्री साम्ब ने निर्माण करवाया था | कहा जाता है की श्री साम्ब ने गोपियों को बुरी नजर से देखा था इसी कारण से श्री कृष्ण बहुत क्रोधित हुए थे उन्होंने श्री साम्ब को श्राप दिया था | जिससे साम्ब कोढ़ी हो गया था | जिससे श्री साम्ब से मैत्रेय जंगल में सूर्य की पूजा एवं तपस्या की जिससे उसका रोग ठीक हो गया था | जब साम्ब तपस्या कर रहे थे तब सूर्य भगवान की मूर्ति चंद्रभागा नदी के पानी में दिखाई दी थी की सूर्य भगवान कमल के फुल पर बिराजमान थे | रोग से स्वस्थ हो जाने के बाद श्री साम्ब ने ही कोणार्क में इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की नीव रखी थी | 

श्री साम्ब के द्वारा बनाये गए इस मंदिर को नरसिंह देव ने पूर्ण करवाया था | 

कोणार्क का सूर्य मंदिर नरसिंह देव ने बनवाया था 

विशु नामक कारीगर को नरसिंह देव ने सूर्य मंदिर को बनाने का कार्यभार सौंपा था विशु कारीगर एवं अन्य 1200 कारीगरों ने मिलकर कोणार्क का सूर्य मंदिर | Konark Sun Temple का निर्माण किया था | इतिहासकारो के अनुसार यह मंदिर सन्न 1238 ईस्वी मंदिर के निर्माण का कार्य शुरू किया गया था | मंदिर का निर्माण करने के लिए 1200 कारीगरों ने कठोर परिश्रम किया यह कार्य 12 वर्षों तक चला था एवं इस मंदिर का निर्माण 12 वर्षो में पूर्ण हुआ था |  

सन्न 1238 ईस्वी में लगभग भारत में यवनों का बोलबाला चल रहा था | नरसिंह देव यवनों को हरा कर यवनों पर विजय प्राप्त की थी इसी खुशी की याद कोणार्क का सूर्य मंदिर | Konark Sun Templeका निर्माण करवाया था |     

कोणार्क का सूर्य मंदिर की सुन्दरता 

कोणार्क का सूर्य मंदिर की ऊंचाई लगभग 68 मीटर की है एवं इस मंदिर के अंदर सूर्य भगवान  रथ के साथ घोड़े है | मंदिर बनाने की कारीगरी को देखते ही उस काल की कला एवं सौन्दर्य का आभास होता है | कोणार्क का सूर्य मंदिर बनाने वाले कारीगरों का उच्च कोटि का कार्य अत्यंत ही बारीकी तरीके से किया गया है | मंदिर का बारीकी कार्य दूसरी जगह किसी मंदिरों में देखने को नहीं मिलता है |

कोर्णाक का सूर्य पूर्ण होने से पूर्व खंडन हो चुका था 

कोर्णाक का सूर्य मंदिर के बारे में इतिहासकार स्पष्ट तो नहीं कह सकते है परन्तु कोणार्क ओड़िसा के शेत्रों में एक कथा प्रचलित चल रही है की शिव नामक कारीगर ने कोर्णाक का सूर्य मंदिर बनाने का बीड़ा उठाया था |

शिव नामक कारीगर Konark Sun Temple बनाने के लिए घर से रवाना होता है उस वक्त उसकी पत्नी गर्भवती थी एवं उसके घर परिवार में शिव के आलावा दूसरा और कोई भी नहीं था फिर भी मंदिर बनाने के लिए चला गया जब शिव नामक कारीगर मंदिर बनाने में व्यस्त हो जाता है मंदिर का निर्माण वर्षो तक चलता है और वह वर्षो तक घर नहीं जाता है | 

मंदिर बनाते-बनाते इतने व्यस्त हो गए की बरसों  बीत गए किंतु मंदिर पर कशल नहीं चढ़ पाया था | उसके बाद अंत समय में राजा ने शिव नामक कारीगर को बुलाकर आदेश दिया की एक महीने यदि कोर्णाक का सूर्य मंदिर पर कलश नहीं चढ़ गया तो शिव नामक कारीगर के साथ सभी कारीगरों को मरतु दण्ड दिया जायेगा | और उसी समय शिव नामक कारीगर के घर पर उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था |

जैसे-जैसे दिन बिताते गए सालो बिताते गए शिव नामक कारीगर का पुत्र 12 वर्ष का हो गया | और शिव नामक कारीगर की पत्नी ने अपने पुत्र को अपने पिता के बारे में बताया | तो पुत्र अकेला ही अपने पिता से मिलने के लिए कोणार्क की तरफ चल पड़ा एवं उसने अपने पिता के लिए पहचान के लिए अपने घर पर खड़े बेरी के बेर लिए ताकि उसके पिता उन बेरो को खाकर अपने पुत्र की पहचान कर सके | 

शिव नामक कारीगर का पुत्र धर्मपद जब कोणार्क पहुँच गया तो अपने पिता के द्वारा मनाया गया कोर्णाक का सूर्य मंदिर को देख कर बहुत खुश हुआ | एवं शिव कारीगर अपने पुत्र को देखकर बहुत खुश हुआ | जब शिव कारीगर अपने अन्य कारीगरों के साथ में कलश चढ़ाने के बारे में बातचीत कर रहा था | उसी समय उसका पुत्र धर्मपद भी उन सभी के साथ बैठा हुआ था | शिव पुत्र धर्मपद ने अपने पिता को बताया की अपने घर पर पड़ी कारीगरी की सारी किताबे मेने पढ़ ली है | एवं में कोणार्क का सूर्य मंदिर के ऊपर कलश आसानी से चढ़ा सकता हूँ | यह सुनकर पिता को विश्वास नहीं हुआ था परन्तु पुत्र ने दुसरे दिन मंदिर Konark Sun Temple पर कलश चढ़ा दिया और धर्मपद के ऐसा करने पर अपने पिता के साथ 1200 कारीगरों की भी जान बचा दी गई एवं 1200 कारीगरों को जान बचाने के लिए धर्मपद ने खुद ही मंदिर के ऊपर से छलांग लगा ली थी | 

शिव कारीगर के पुत्र धर्मपद को पता था की अगर कोणार्क का सूर्य मंदिर के ऊपर कलश नहीं चढ़ाया गया तो राजा कारीगरों को मृत्युदंड भी दे सकते है | धर्मपद का यह बलिदान देखकर पिता शिव कारीगर के असू नहीं रुके | आज भी उड़िया की भाषा में एक कहावत है की -तुम्हे पुत्र प्यारा है या 1200 कारीगर |

कुछ लोगों का कहना है की शिव नामक कारीगर अपने पुत्र धर्मपद की मृत्यु से पागल हो गया था और शिव नामक कारीगर ने मंदिर को गिरना शुरू कर दिया  था | परन्तु कुछ लोगों का कहना है कि श्राप के ऐसा हुआ है| मंदिर का बचा हुआ हिस्सा इस बात का प्रमाण होता है कोणार्क का सूर्य मंदिर की कला की दृष्टि से यह मंदिर बेजोड़ था | एवं पत्थरो पर ईतनी बारीकी का कार्य दुसरे मंदिरों में देखने को नहीं मिलता है | | Konark Sun Temple|

वर्तमान समय में सरकार ने  कोणार्क का सूर्य मंदिर के यहां संग्रहालय का  निर्माण भी किया गया है | 

निष्कर्ष :- 

कोर्णाक का सूर्य मंदिर का निर्माण किसने एवं किस स्थिति में बनाया गया एवं इस मंदिर को बनाने में किस तरह 1200 कारीगरों ने परिश्रम किया एवं शिव नामक कारीगर के पुत्र धर्मपद ने अपनी जान कैसे और किस तरह दी और किस-किस ने अपना बलिदान दिया यह सम्पूर्ण जानकारी इस लेख के  माध्यम से दी गई है | 

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